RAJAT JOSHI sagawara











शांति Peace

जिस शांति की तुमको तलाश है, वह तुमसे दूर नहीं है। वह तुम्हारे अन्दर है और जब तक तुम जीवित हो, तुम्हारे अन्दर रहेगी।
हर एक मनुष्य के अन्दर संभावना है कि वह जीते-जी शांति का अनुभव कर सके। यह है हमारा संदेश।

Tuesday, September 2, 2011

संस्कृति Culture

भारत की एकता का मुख्य आधार है एक संस्कृति, जिसका उत्साह कभी नहीं टूटा। यही इसकी विशेषता है। भारतीय संस्कृति अक्षुण्ण है, क्योंकि भारतीय संस्कृति की धारा निरंतर बहती रही है और बहेगी। -
आस्तिक भावना और ईश्वर में विश्वास भारतीय संस्कृति का मुख्य अंग है। कोई भी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती यदि वह अपने को अन्य से पृथक रखने का प्रयास करे। युग-युग के संचित संस्कार, ऋषि-मुनियों के उच्च विचार।
धीरों-वीरों के व्यवहार, हैं निज संस्कृति के श्रृंगार॥ हिंदू संस्कृति आध्यात्मिकता की अमर आधारशिला पर आधारित है। -
आदमी या औरत की संस्कृति का पता इस बात से लगता है कि व्यक्ति झगड़े के समय कैसा आचरण करता है। 




आनंद Joy

मनुष्य अपने आनंद का निर्माता स्वयं है। - थोरो

Wednesday, November 12, 2011

गुणी

हीरा पड़ा बाज़ार में, रहा छार लपटाय।
बहुतक मूरख चलि गए, पारख लिया उठाय॥
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Virtue is never left to stand alone. 






HAPPY NEW YEAR

A brand new year 2009 is here,
Open your heart and be of good cheer.
A year full of promise and good things to come.
In your list of resolutions, let good deeds be one.
Help one another and give of your love,
for that will be pleasing to the God within.

जरा मुस्कराइए

कमाल की दीवार

एक ग्रामीण पिता - पुत्र अपने नजदीकी शहर में शॉपिंग मॉल देखने गए। वहां की हर चीज देखकर वे आश्चर्यचकित थे, लेकिन एक जगह एक खुलने और बंद होने वाली दीवार (लिफ्ट ) देखकर वे विशेष रूप से प्रभावित हुए। उन्होंने ऐसी लिफ्ट पहले कभी नहीं देखी थी। जिस समय वह पिता-पुत्र आंखें फाड़कर उस दीवार की ओर देख रहे थे उसी समय एक बूढ़ी औरत उस दीवार के अन्दर चली गयी और दीवार फ़िर बंद हो गयी। थोड़ी देर बाद दीवार अपने आप खुली और एक खुबसूरत लड़की बाहर निकली । पिता यह सब देखकर चिल्लाते हुए पुत्र से बोला - बेटा जल्दी घर जा और अपनी माँ को लेकर आ।

Saturday, December 20, 2011

कदरदानी

आलिम अन्दर मयाने जाहिल रा।
मसले गुप्तः अंद सद्दिकां॥
शाहिदे दर मयाने कोरानस्त।
मशहफ़े दर मयाने जिन्दी कां॥


विद्वानों की कदर विद्वान ही करते हैं। मूर्खों में विद्वानों की वैसी ही दशा होती है जैसे अंधों में किसी सुंदरी की और नास्तिकों में सदग्रंथ की। एक अन्धे पुरूष की पत्नी की व्यथा इस बात से प्रकट होती है - सखी री ! काहे को करूं मैं सिंगार, पिया मोरे आंधरे। इसी प्रकार सदग्रंथ की कदर नास्तिक और मूर्ख नहीं कर सकते, न उससे लाभ उठा सकते हैं

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